भाषाएँ दिलों को जोड़कर दो देशों के बीच सेतु बनाती हैं – प्रो. शंभुनाथ तिवारी

टीएनएन समाचार : हिंदी और उर्दू दोनों भाषाएँ आस्ट्रेलिया जैसे दक्षिणी गोलार्ध में सुदूर स्थित दूसरी दुनिया के विकसित देश में भारतीय समुदाय के मध्य न केवल अपनेपन और आत्मीयता का परिवेश बनाती हैं, बल्कि भारत और आस्ट्रेलिया के मध्य सांस्कृतिक आदान -प्रदान का भी माध्यम बनती हैं। आस्ट्रेलिया में भारत के विभिन्न भाषा -भाषियों को हिंदी-उर्दू आपस में जोड़ने का कार्य करती हैं। दरअसल हिंदी-उर्दू भारत और आस्ट्रेलिया के बीच संबंधों का एक मज़बूत सेतु निर्मित करती है। इसका जीवंत उदाहरण आस्ट्रेलिया के सिडनी जैसे शहर में भी दिखाई देता है, जहाँ हिंदी -उर्दू का साहित्यिक और सांस्कृतिक सामंजस्य व्यापक स्तर पर देखा जा सकता है। यह विचार अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर, शंभुनाथ तिवारी ने सिडनी के एक रेडियो चैनल में दिए गए अपने साक्षात्कार में व्यक्त किए। रेडियो के दर्पण स्टूडियों में प्रदीपकुमार उपाध्याय और संजीव शर्मा को दिए साक्षात्कार में प्रो. शंभुनाथ तिवारी ने भारत-आस्ट्रेलिया के साहित्यिक- सांस्कृतिक संबंधों तथा हिंदी -उर्दू के रचनाकारों द्वारा निर्मित वहाँ के अकादमिक परिवेश पर विस्तार से बातचीत की। कमोबेश दो घंटे के अपने विस्तृत साक्षात्कार में उन्होंने सिडनी के साहित्यिक परिवेश पर बोलते हुए कहा कि मैं 2016 से लगभग प्रतिवर्ष यहाँ आता हूँ, जहाँ हिंदी-उर्दू के लोगों के साथ जीवंत संवाद स्थापित करने का प्राय: अवसर मिलता है। इस बातचीत में उन्होंने कहा कि भारत और आस्ट्रेलिया के पारस्परिक सांस्कृतिक संबंधों को मज़बूत करने तथा भारतीय डायसपोरा को आपस में जोड़ने में हिंदी-उर्दू की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है, क्योंकि भाषाएँ भौगोलिक सीमाओं से परे दिलों को जोड़कर दो देशों के मध्य सेतु बन जाती हैं।
प्रो. शंभुनाथ तिवारी के उक्त साक्षात्कार का संज्ञान लेते हुए भारत में आस्ट्रेलियन दूतावास के हाई कमिश्नर की ओर से उनके डिप्टी हाई कमिश्नर मिस्टर निक मैक कैफरे ( Nic McCaffrey) ने सिडनी रेडियो से प्रसारित साक्षात्कार को इंडिया-आस्ट्रेलिया के बीच सांस्कृतिक सेतु ( cultural Bridge) के रूप में स्वीकार किया!
आस्ट्रेलियन गवर्नमेंट की ओर से उन्होंने प्रो. तिवारी के उक्त साक्षात्कार को भारत-आस्ट्रेलिया के साहित्यिक-सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ानेवाला कदम बतलाया। वे अपनी भावनाएँ व्यक्त करते हुए कहते हैं- “अलीगढ़ से ऑस्ट्रेलिया तक, प्रो. शंभूनाथ तिवारी ने ऑस्ट्रेलिया के दर्पण स्टूडियो में हिंदी पट्टी की भावना को जीवंत कर दिया।
हिंदी, उर्दू और हमारी साझा साहित्यिक विरासत पर उनका सत्र एक पुनर्स्मरणीय था। भाषा पुल बनाती है, सीमाएँ नहीं।”