एएमयू के अब्दुल्ला स्कूल में नशा मुक्त भारत पखवाड़ा के तहत जागरूकता कार्यक्रम आयोजित

TNN समाचार : देशव्यापी नशा मुक्त भारत पखवाड़ा के अंतर्गत, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अब्दुल्ला स्कूल में नशा मुक्ति के प्रति जागरूकता फैलाने हेतु एक व्यापक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया।
कार्यक्रम का नेतृत्व अधीक्षक उमरा जहीर ने किया। उन्होंने स्टाफ को नशे और मादक पदार्थों की तस्करी से जुड़ी गंभीर समस्याओं के बारे में जानकारी दी। उन्होंने समझाया कि नशे की लत न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, बल्कि व्यक्तिगत संबंधों और जीवन की गुणवत्ता पर भी नकारात्मक असर डालती है।
उन्होंने ‘2047 तक नशा मुक्त भारत’ के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर भी बल दिया।
उमरा जहीर ने सभी स्टाफ सदस्यों को नशा मुक्ति की शपथ दिलाई, जिससे उनके अभियान के प्रति समर्पण को सुदृढ़ किया गया। साथ ही, छात्रों और अभिभावकों के लिए एक जागरूकता वीडियो भी साझा किया गया, ताकि व्यापक समुदाय को इस मुहिम से जोड़ा जा सके।
यह कार्यक्रम 26 जून को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय मादक पदार्थ निषेध दिवस की ओर भी ध्यान आकर्षित करता है, जो इस विषय की वैश्विक महत्ता को रेखांकित करता है।
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एएमयू के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ के उपलक्ष में ‘संविधान हत्या दिवस’ पर संगोष्ठी का आयोजन
अलीगढ़, 25 जूनः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा भारत में आपातकाल की घोषणा की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर ‘संविधान हत्या दिवस’ पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी का उद्देश्य आपातकाल के प्रभावों और भारतीय लोकतंत्र की संरचना में उसकी प्रासंगिकता पर समालोचनात्मक चिंतन करना था।
अपने उद्घाटन भाषण में विभागाध्यक्ष प्रो. मोहम्मद नफीस अहमद अंसारी ने इस दिन के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित किया और उन घटनाओं पर प्रकाश डाला, जिनके चलते उन्होंने इसे भारतीय लोकतंत्र का ‘सबसे काला दिन’ करार दिया। उन्होंने कहा कि 25 जून को केवल एक ऐतिहासिक घटना के रूप में नहीं, बल्कि लोकतंत्र की नाजुकता की निरंतर याद के रूप में देखा जाना चाहिए।
प्रो. अर्शी खान ने आपातकाल की अवधि का कालक्रमानुसार विश्लेषण प्रस्तुत किया और उन राजनीतिक एवं संस्थागत कारणों को रेखांकित किया, जिनके चलते आपातकाल लागू किया गया। उन्होंने विशेष रूप से 1977 के बाद के कालखंड में इसके दीर्घकालिक प्रभावों पर भी विचार किया।
प्रो. मोहम्मद मोहिबुल हक ने आपातकाल को उस अवधि के रूप में वर्णित किया जब नागरिक स्वतंत्रताओं और मौलिक अधिकारों का हनन हुआ। उन्होंने “हम भारत के लोग”, जो देश के वास्तविक शासक हैं, के लिए लोकतांत्रिक स्थान को पुनः प्राप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया।
शोधार्थी वाजीहा ने संविधान हत्या दिवस की प्रासंगिकता पर एक विचारोत्तेजक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया और लोकतंत्र की सफलता के लिए शक्तियों के पृथक्करण (सेपरेशन आॅफ पावर) की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया।
कार्यक्रम का सारांश प्रस्तुत करते हुए डॉ. इफ्तेखार अहमद अंसारी ने आभार ज्ञापित किया।