भारतीय चिंतन स्त्री और पुरुष के मध्य सम भाव की स्थापना से अधिक उनके मध्य समरस भाव की स्थापना के आग्रह पर केन्द्रित है : डॉ. बालमुकुन्द पाण्डेय
भारतीय विमर्श में महिलाएँ
टीएनएन समाचार : विश्व महिला दिवस के अवसर पर भारतीय इतिहास संकलन योजना समिति, दिल्ली प्रान्त की महिला ईकाई महिला इतिहासकार परिषद द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू अध्ययन केंद्र, रामानुजन महाविद्यालय और भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद, नयी दिल्ली के संयुक्त तत्त्वावधान में भारतीय विमर्श में महिलाएँ विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का महत्वपूर्ण आयोजन 8 मार्च 2025 को दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय परिसर में किया गया।
उद्घाटन सत्र में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय संगठन सचिव आदरणीय डॉ. बालमुकुन्द पाण्डेय जी भाई साहब ने बताया कि भारतीय चिंतन स्त्री और पुरुष के मध्य सम भाव की स्थापना से अधिक उनके मध्य समरस भाव की स्थापना के आग्रह पर केन्द्रित है। विशिष्ट अतिथि अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना की महिला इतिहासकार परिषद की राष्ट्रीय प्रमुख, सुप्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. सुस्मिता पाण्डे ने कहा कि आज भारतीय परिप्रेक्ष्य में स्त्रियों की भूमिका का आकलन और इतिहास अध्ययन की आवश्यकता है। राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजकों में से एक रामानुजन महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. रसाल सिंह ने कहा कि भारतीय समाज और राजनीतिक चेतना में पश्चिम देशों के मुकाबले स्त्रियों को अधिक अधिकार और स्वायत्तता दी है। दिल्ली विश्वविद्यालय के डीन प्रो. बलराम पाणी ने अपने उद्बोधन में भारतीयता में स्त्री के उदात्त स्वरूप को रेखांकित किया। सम्मानित अतिथियों के रूप में दिल्ली तकनीकी विश्वविद्यालय (DTU) पोस्ट ग्रेजुएट स्टडीज की संकायाध्यक्ष प्रो. रिंकू शर्मा तथा समाज सेविका श्रीमती संध्या सिंह ने कार्यक्रम में अपनी सहभागिता की।
आठ तकनीकी सत्रों में अस्सी के करीब शोधपत्रों की प्रस्तुति हुई। तत्पश्चात, समारोप सत्र का आयोजन हुआ। समारोप सत्र में प्रो. रजनी अब्बी जी ने महिला अधिकारों पर जागरूकता की महत्ता पर बल देते हुए समसामयिक विषयों को लेकर ऐसी ही सकारात्मकता के साथ कार्य करने पर बल देने को वर्तमान समय की आवश्यकता बताया। समारोप सत्र के लिए सिक्किम विश्वविद्यालय से पधारीं प्रो. वीनू पंत ने अपने उद्बोधन में प्राचीन भारत की पाँच महान स्त्रियों अहिल्या, द्रौपदी, तारा, कुन्ती तथा सावित्री के उदाहरण द्वारा भारतीय समाज के निर्माण में उनके चरित्र और महानतम त्याग के सर्वोत्कृष्ट योगदान बताते हुए, वर्तमान पीढ़ी के लिए उनकी आवश्यकता को विस्तारपूर्वक उल्लेखित किया। इस एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में संपूर्ण भारतवर्ष से आये शिक्षक, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने इसमें भाग लिया और आठ समानान्तर तकनीकी सत्रों में लगभग 80 शोधपत्रों का वाचन हुआ।
यह गोष्ठी अपने उद्देश्य, महत्ता और प्रासंगिकता के अनुरूप पूरी तरह सफ़ल रही।