वक्फ संशोधन विधेयक 2024 : एक बहुप्रतीक्षित सुधार का परिणाम है !
- प्रो. जसीम मोहम्मद
TNN समाचार : भारत सरकार के कुछ प्रमुख संशोधन विधेयकों में से एक तथा लंबे समय से प्रतीक्षित वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 और मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक 2024 लोकसभा में प्रस्तुत किए जाने के कारण अब भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन पर एक नई तरह की बहसें शुरू हो गई हैं। ये विधेयक वक्फ संपत्तियों के कामकाज को पारदर्शी, कुशल और जवाबदेह बनाने के लिए सुधारों का वादा करते हैं। हालाँकि, जैसा कि सभी विधायी सुधारों के मामले में कहा जा सकता है कि क्या ये कानून वास्तव में परिवर्तनकारी हैं, या वे केवल गहरे परंपरागत मुद्दों की सतह को खरोंचते हैं?
वक्फ संपत्तियाँ वे हैं, जिन्हें इस्लामी कानून के तहत धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के क्रम में बंदोबस्ती के लिए अलग रखा गया है, जिनकी अपरिवर्तनशीलता अद्वितीय है। संपत्ति वक्फ घोषित होने के बाद एक स्थायी बंदोबस्ती बन जाती है और इस प्रकार वह विशेष उद्देश्य के लिए अल्लाह को हस्तांतरित हो जाती है। इस नेक इरादे को बनाए रखना अनिवार्य होने के बावजूद मामला अक्सर कुप्रबंधन, अतिक्रमण और मुकदमेबाजी से आगे निकल जाता है। 94 लाख एकड़ में फैली 87 लाख से ज़्यादा संपत्तियाँ वक्फ बोर्ड को भारत सरकार के बराबर सबसे बड़े भूमिधारकों में से एक बनाती हैं। भारी अक्षमता और निगरानी की कमी के कारण इन संपत्तियों का शायद ही प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया जाता हो।
उपर्युक्त अनेक चुनौतियों और कठिनाइयों से निपटने के लिए वक्फ अधिनियम, सन् 1995 में बनाया गया था, लेकिन तभी से इसे लागू और कार्यान्वित करने की प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष नहीं कही जा सकती है। विचारणीय है कि धीमी सर्वेक्षण गतिविधि, अभिलेखों का आधा-अधूरा डिजिटलीकरण या मुतवल्लियों (संरक्षकों) द्वारा अधिकार का दुरुपयोग जैसी समस्याएँ अब तक मौजूद रही हैं। हालाँकि सन् 2013 के संशोधनों ने कुछ मुद्दों को संबोधित करने की कोशिश की, लेकिन हितधारकों को यकीन नहीं है कि उससे कोई वास्तविक बदलाव लाया गया है। इन मुद्दों के साथ, 2024 के संशोधन प्रभावी रूप से सिस्टम में आमूलचूल परिवर्तन का प्रस्ताव करते है, लेकिन क्या वे पर्याप्त हैं? यह एक विचारणीय प्रश्न है।
वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 कुछ महत्वपूर्ण बदलाव करता है। पहला, वक्फ अधिनियम के लिए एक नया शीर्षक है, जिसका उद्देश्य उसे सशक्त, कुशल और विकासात्मक बनाना है। दूसरा, ‘उपयोग द्वारा वक्फ’ की पूरी अवधारणा को खत्म करना; जिसके तहत लंबे समय तक धार्मिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल की अनुमति देने पर ही भूमि को वक्फ माना जा सकता था। ऐसे प्रावधानों से भूमि के स्वामित्व को लेकर विवाद और दावे होने की प्रवृत्ति थी। तीसरा, विधेयक वक्फ-अल-औलाद (पारिवारिक वक्फ) बनाते समय महिलाओं के अधिकारों सहित उत्तराधिकार अधिकारों की सुरक्षा का प्रावधान करता है।
इनके अलावा, उक्त बिल में कलेक्टरों को वक्फ संपत्तियों का सर्वेक्षण करने का प्रावधान किया गया है, जिसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों की पहचान और पंजीकरण की बदनाम धीमी गति को तेज करना है। महत्वपूर्ण रूप से, बिल में केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों को नामित करने का प्रस्ताव है, जो समावेशिता और व्यापक प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण और आवश्यक कदम है। यह प्रयास सराहनीय है, लेकिन ऐसे प्रावधानों की व्यावहारिक उपयोगिता पर भी सवाल उठाना चाहिए। क्या वे कभी कुप्रबंधन के कारणों को संबोधित करेंगे, या क्या वे सिर्फ एक और नौकरशाही बाधा बनकर रह जाएँगे ? वक्फ संपत्तियों को प्रभावित करनेवाले सबसे विवादास्पद पहलुओं में से एक, उनका अपरिवर्तनीय स्वरूप है। ‘एक बार वक्फ हमेशा के लिए वक्फ’ की उलझाऊँ और अस्पष्ट परिभाषा असंख्य मुकदमों में फँस गई है, जिनमें से कुछ कई सदियों पहले के हैं। उदाहरण के लिए, बेंगलुरु में ईदगाह मैदान और सूरत नगर निगम की इमारत वक्फ से संबंधित दावों को लेकर विवाद में रही है, जिससे भ्रम और संघर्ष का सिलसिला जारी है। वक्फ न्यायाधिकरण के फैसलों पर किसी न्यायिक जांच के अभाव में, फिर से किसी की शिकायतों के लिए अपील करने के लिए कोई उच्च अधिकारी नहीं है। 2024 के संशोधनों ने न्यायाधिकरण के निर्णयों के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की अनुमति देकर इन मामलों का निवारण करने का प्रयास किया है। हालाँकि , आलोचकों का तर्क है कि यह आधे-अधूरे उपाय से अधिक नहीं है: जब तक अपरिवर्तनीयता सिद्धांत की पूरी समीक्षा और ऐतिहासिक दावों के लिए एक तंत्र उपलब्ध नहीं होता, तब तक मुकदमेबाजी और विवाद का चक्र जारी रहने की संभावना बनी रहेगी। संशोधनों का मसौदा तैयार करते समय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने राज्य वक्फ बोर्ड, मुतवल्ली और जन प्रतिनिधियों सहित हितधारकों से परामर्श किया है। हालाँकि, वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना में विविधता की कमी के बारे में चिंताएँ बनी हुई हैं। सच्चर समिति की सिफारिशें, जिसमें अधिक पारदर्शिता और वक्फ प्रबंधन में गैर-मुस्लिम विशेषज्ञों को शामिल करने का आह्वान किया गया था, आंशिक रूप से संबोधित की गई प्रतीत होती हैं। इसके अलावा, विधेयक में बोहरा और अघाखानी संप्रदायों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड बनाने की अनुमति देने का प्रस्ताव है। हालाँकि यह इन समुदायों की जरूरतों को पूरा कर सकता है, लेकिन विरोधियों का मानना है कि इससे और अधिक विखंडन, बिखराव और प्रशासनिक जटिलताएँ पैदा हो सकती हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 सही दिशा में उठाया गया एक कदम है। वक्फ प्रणाली को वक्फ उत्तराधिकार अधिकार, सर्वेक्षण में देरी और वक्फ समावेशिता के रूप में आधुनिक बनाने के प्रयास से इस दिशा में कई समस्याओं से निपटा जा सकता है। बावजूद इसके यह कुछ संबंधित और दबाव वाले मुद्दों, जैसे वक्फ संपत्ति अपरिवर्तनीयता और न्यायिक निगरानी की कमी से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं है।
अच्छे संशोधनों के लिए मजबूत कार्यान्वयन, हितधारकों के साथ संवाद और उनकी चिंताओं को दूर करने की प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है, अन्यथा दुर्भाग्य से एक अच्छा इरादा गलत प्रमाणित हो जाता है। वक्फ प्रणाली कुछ सुधारों से अधिक की हकदार है। इसकी महान क्षमता को देखते हुए, इसमें ऐसे आमूलचूल परिवर्तन और बदलाव किए जाने की आवश्यकता है, जो आनेवाली कई पीढ़ियों के लिए पारदर्शिता, जवाबदेही और न्यायसंगत प्रबंधन की गारंटी देता हो। इस बीच, संसद की कार्रवाई के दौरान, सभी हितधारकों के साथ ठोस और व्यापक बातचीत का अवसर कानून बनानेवालों द्वारा अपनाया जाना चाहिए। वक्फ प्रणाली केवल संपत्ति के प्रबंधन के बारे में नहीं है; बल्कि यह दान और सामुदायिक सेवा की विरासत को बनाए रखने के विषय में है। इस प्रकार, प्रणालीगत मुद्दों को संबोधित करना और संशोधनों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना, अंततः भारत में उनकी वक्फ संपत्तियों की वास्तविक क्षमताओं को रेखांकित किए जाने का मार्ग प्रशस्त करेगा! इस दिशा में सकारात्मक और समावेशी प्रयास किए जाने की महती आवश्यकता है।
(लेखक तुलनात्मक साहित्य के प्रोफेसर और सेंटर फॉर नरेंद्र मोदी स्टडीज / CNMS के अध्यक्ष हैं, संपर्क-www.namostudies.com, ईमेल: profjasimmd@gmail.com )