भारत में 2020 के बाद शिक्षा परिवर्तन: प्रौद्योगिकी का उपयोग और ग्रामीण आवश्यकताओं को संबोधित करना

 

2020 में कोविड-19 महामारी शुरू होने के बाद से भारत में शिक्षा का परिदृश्य उल्लेखनीय रूप से बदल गया है। प्रौद्योगिकी में प्रगति और समाज की बदलती जरूरतों से प्रेरित इस बदलाव ने सीखने के नए रास्ते खोले हैं, साथ ही शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच असमानताओं को भी उजागर किया है। इस परिवर्तन के सकारात्मक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करके और विशेष रूप से गांवों के लिए ठोस कदमों की रूपरेखा तैयार करके, भारत एक अधिक समावेशी और भविष्योन्मुखी शिक्षा प्रणाली बना सकता है।

शिक्षा परिवर्तन का सकारात्मक पक्ष

1. प्रौद्योगिकी के रूप में खेल बदलने वाला तत्व
महामारी के दौरान डिजिटल उपकरणों को तेजी से अपनाने ने भारत भर में शिक्षा में क्रांति ला दी है। ऑनलाइन मंच, मोबाइल ऐप्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) ने सीखने को अधिक सुलभ और व्यक्तिगत बना दिया है। उदाहरण के लिए, AI-संचालित उपकरण छात्रों की व्यक्तिगत जरूरतों के अनुसार पाठ तैयार कर सकते हैं, वहीं BYJU’S और खान अकादमी जैसे ऐप्स ने लाखों लोगों तक गुणवत्तापूर्ण सामग्री पहुंचाई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 ने प्रौद्योगिकी एकीकरण पर जोर देकर इस बदलाव का समर्थन किया है, जिसमें DIKSHA मंच जैसे पहल शामिल हैं, जो हिंदी, तमिल और बंगाली सहित कई भाषाओं में मुफ्त डिजिटल संसाधन प्रदान करता है। यह बहुभाषी दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि ग्रामीण क्षेत्रों सहित विविध क्षेत्रों के छात्र अपनी मातृभाषा में सीख सकें, जिससे समझ और जुड़ाव बढ़ता है।

2. शहरी-ग्रामीण अंतर को पाटना
प्रौद्योगिकी में शहरी-ग्रामीण शिक्षा के अंतर को कम करने की क्षमता है। सस्ते स्मार्टफोन और बढ़ती इंटरनेट कनेक्टिविटी के साथ—जो 2025 तक 900 मिलियन से अधिक उपयोगकर्ताओं तक पहुंच गई है, स्टेटिस्टा के अनुसार—ग्रामीण छात्र उन संसाधनों तक पहुंच प्राप्त कर रहे हैं जो पहले केवल शहरों तक सीमित थे। अटल टिंकरिंग लैब्स (ATLs) जैसे कार्यक्रम, जिनके तहत 2024 तक 10,000 से अधिक लैब संचालित हो रहे हैं, ग्रामीण स्कूलों में नवाचार और व्यावहारिक सीखने को बढ़ावा दे रहे हैं। ये लैब कोडिंग और रोबोटिक्स की शुरुआत करते हैं, जिससे ग्रामीण छात्रों को शहरी छात्रों के समान 21वीं सदी के कौशल मिलते हैं।

3. शिक्षकों और छात्रों को सशक्त बनाना
डिजिटल उपकरणों ने शिक्षकों को ग्रेडिंग जैसे कार्यों को स्वचालित करने और छात्रों के प्रदर्शन का वास्तविक समय डेटा प्रदान करके सशक्त बनाया है। अब शिक्षक इंटरैक्टिव शिक्षण विधियों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, जबकि छात्र वर्चुअल रियलिटी (VR) जैसी immersive तकनीकों से अनुभवात्मक सीखने का लाभ उठा सकते हैं—इतिहास के पाठ वर्चुअल टूर के माध्यम से या विज्ञान प्रयोगशालाओं में सिमुलेटेड प्रयोगों के रूप में सोचें। NEP 2020 का डिजिटल शिक्षण विधियों में शिक्षक प्रशिक्षण पर जोर इस सकारात्मक बदलाव को और बढ़ाता है।

4. नामांकन और समावेशिता में वृद्धि
NEP 2020 के साथ संरेखित सरकारी प्रयासों ने सभी स्तरों पर नामांकन को बढ़ावा दिया है। 2014-15 के बाद से, अनुसूचित जाति (SC) के लिए उच्च शिक्षा नामांकन में 50%, अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए 75%, और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए 54% की वृद्धि हुई है। 2022-23 में महिलाओं का उच्च शिक्षा नामांकन 38.8% बढ़कर 2.18 करोड़ तक पहुंच गया, जिसमें STEMM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित और चिकित्सा) छात्रों में 43% महिलाएं शामिल हैं। ये आंकड़े समावेशिता की ओर बढ़ते कदम को दर्शाते हैं, यहां तक कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी, जहां शिक्षा तक पहुंच में सुधार हो रहा है।

सांख्यिकीय अंतर्दृष्टि: गांवों बनाम शहरों में शिक्षा परिवर्तन

शिक्षा में परिवर्तन एक समान नहीं रहा है, गांव शहरों से पीछे हैं,尽管 प्रगति हुई है। उपलब्ध डेटा के आधार पर एक तुलनात्मक नजर:

– नामांकन रुझान: राष्ट्रीय स्तर पर, 66.7% प्राथमिक स्कूल के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं, जबकि 23.4% निजी संस्थानों को चुनते हैं, NSSO सर्वेक्षण (2023) के अनुसार। शहरी क्षेत्रों में 43.8% बच्चे निजी स्कूलों में नामांकित हैं, जबकि 36.5% सरकारी स्कूलों में, जो गुणवत्ता की कथित प्राथमिकता को दर्शाता है। इसके विपरीत, ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्कूलों पर अधिक निर्भरता है (70% से अधिक नामांकन), जहां केवल 15-20% निजी संस्थानों में हैं, जो affordability और उपलब्धता की कमी के कारण है।

– डिजिटल पहुंच: 2021 ASER रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि महामारी के दौरान केवल 8% ग्रामीण बच्चे नियमित रूप से ऑनलाइन पढ़ाई करते थे, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 25% था। 2023 तक यह अंतर थोड़ा कम हुआ, जिसमें 15% ग्रामीण छात्र ऑनलाइन सीखने तक पहुंचे, बेहतर इंटरनेट проникновение के कारण (47% ग्रामीण परिवारों को 2017-18 ग्रामीण विकास मंत्रालय सर्वे के अनुसार 12 घंटे से अधिक बिजली मिली, और तब से और लाभ हुआ)।

– सीखने के परिणाम: ग्रामीण कर्नाटक में, कक्षा 5 के छात्रों का कक्षा 2 स्तर के पाठ पढ़ने में सक्षम होने का हिस्सा 2018 में 47.6% से घटकर 2020 में 32.8% हो गया, ASER के अनुसार, जो महामारी से प्रेरित सीखने के नुकसान को दर्शाता है। शहरी क्षेत्रों में, निजी ट्यूशन और डिजिटल उपकरणों तक बेहतर पहुंच के साथ, परिणाम अपेक्षाकृत स्थिर रहे (लगभग 50-55%)।

– पूर्व-प्राथमिक शिक्षा: ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 13.1% अनुसूचित जनजाति (ST) और 17.3% अनुसूचित जाति (SC) के 3-5 साल के बच्चे पूर्व-प्राथमिक शिक्षा में शामिल होते हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में उच्च जाति के 29.4% बच्चे ऐसा करते हैं, 75वें NSO राउंड (2017-18) के अनुसार। NEP 2020 के प्रारंभिक बचपन शिक्षा पर जोर के बावजूद यह अंतर बना हुआ है।

ये आंकड़े शहरी-ग्रामीण असमानता को रेखांकित करते हैं, लेकिन वे गांवों में बुनियादी ढांचे और नीतियों के विकास के साथ वृद्धि की संभावना को भी उजागर करते हैं।

2020 के बाद ग्रामीण शिक्षा की जरूरतें और कदम

महामारी ने भारत की शिक्षा प्रणाली में कमजोरियों को उजागर किया, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, लेकिन इसने बदलाव को भी उत्प्रेरित किया। इस परिवर्तन को बनाए रखने और विस्तार करने के लिए क्या करना चाहिए:

1. डिजिटल बुनियादी ढांचे को बढ़ाना
– कदम: भारतनेट जैसे पहलों के माध्यम से सस्ती इंटरनेट पहुंच का विस्तार करें, 2030 तक 100% ग्रामीण ब्रॉडबैंड कवरेज का लक्ष्य रखें। कम आय वाले परिवारों के लिए स्मार्टफोन और लैपटॉप पर सब्सिडी दें।
– क्यों: ASER 2021 के अनुसार, महामारी के दौरान केवल 36% ग्रामीण बच्चों के पास अपने स्मार्टफोन थे, जिसने ऑनलाइन सीखने को सीमित किया। इस अंतर को पाटना समान अवसर सुनिश्चित करता है।

2. स्कूल बुनियादी ढांचे को मजबूत करना
– कदम: ग्रामीण सरकारी स्कूलों को आधुनिक सुविधाओं—कंप्यूटर, स्मार्ट बोर्ड, और बिजली (2017-18 में 36% स्कूलों में यह नहीं था)—से अपग्रेड करें। प्रति बच्चे के खर्च में वृद्धि करें, जो 2013-14 में ₹10,780 से बढ़कर 2021-22 में ₹25,043 हो गया, लेकिन और जरूरत है।
– क्यों: गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचा उपस्थिति और सीखने के परिणामों को बढ़ाता है, ड्रॉपआउट दर को कम करता है (ग्रामीण माध्यमिक स्कूलों में अभी भी 20-25% अधिक है)।

3. शिक्षक प्रशिक्षण और भर्ती
– कदम: ग्रामीण शिक्षकों को डिजिटल उपकरणों और आधुनिक शिक्षण विधियों में प्रशिक्षित करें, छात्र-शिक्षक अनुपात में सुधार का लक्ष्य रखें (वर्तमान में ग्रामीण क्षेत्रों में 30:1 बनाम शहरी में 20:1)। सांस्कृतिक और भाषाई बाधाओं को दूर करने के लिए स्थानीय शिक्षकों की भर्ती करें।
– क्यों: सशक्त शिक्षक आकर्षक, प्रासंगिक शिक्षा प्रदान कर सकते हैं, मूलभूत कौशल में गिरावट को उलट सकते हैं।

4. समुदाय की भागीदारी और जागरूकता
– कदम: ग्रामीण मानसिकता को “शिक्षा एक विलासिता” से आवश्यकता में बदलने के लिए अभियान शुरू करें। स्कूल उपस्थिति और गुणवत्ता की निगरानी के लिए ग्राम पंचायतों को शामिल करें।
– क्यों: अनुमानों के अनुसार, 95 मिलियन से अधिक बच्चे स्कूल से बाहर हैं, जो मुख्य रूप से ग्रामीण हैं, घरेलू जिम्मेदारियों जैसे सामाजिक-आर्थिक दबावों के कारण।

5. स्थानीयकृत सामग्री और व्यावसायिक फोकस
– कदम: क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम विकसित करें और NEP 2020 के 5+3+3+4 मॉडल के अनुसार मिडिल स्कूल से व्यावसायिक प्रशिक्षण (जैसे, कृषि तकनीक, हस्तशिल्प) को एकीकृत करें।
– क्यों: प्रासंगिक शिक्षा रोजगार क्षमता बढ़ाती है, ग्रामीण शिक्षित युवाओं में उच्च बेरोजगारी दर (15-20% बनाम शहरी 10-12%) को संबोधित करती है।

6. सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPPs)
– कदम: EdTech स्टार्टअप्स को सरकारी स्कूलों के साथ सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित करें, गांवों में मुफ्त या कम लागत वाले मंच प्रदान करें। 2031 तक $30 बिलियन EdTech बाजार के अनुमान का लाभ उठाएं।
– क्यों: PPPs तेजी से समाधान स्केल कर सकते हैं, जैसा कि शहरी क्षेत्रों में देखा गया जहां निजी निवेश ने शिक्षा नवाचार को बढ़ावा दिया।

2020 के बाद भारत का शिक्षा परिवर्तन लचीलापन और अवसर की कहानी है। प्रौद्योगिकी ने एक क्रांति शुरू की है, जिससे सीखना अधिक सुलभ, समावेशी और कौशल-उन्मुख हो गया है, जबकि NEP 2020 जैसी नीतियां एक दूरदर्शी ढांचा प्रदान करती हैं। गांवों में, जहां भारत की 60% से अधिक आबादी रहती है, बुनियादी ढांचे, शिक्षक सशक्तिकरण और समुदाय की भागीदारी पर ध्यान शहरी प्रगति से मेल खाने के लिए जरूरी है। आंकड़े चुनौतियों और सफलताओं दोनों को,—ग्रामीण नामांकन बढ़ रहा है, लेकिन गुणवत्ता और पहुंच में कमी है।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button